1. धन्नावंशी वैरागी समाज का श्री धन्नाजी महाराज को अपना पथ गुरू मानने के क्या-क्या कारण हैं ?
जैसे सूर्य वंश के प्रदाता सूर्य,चन्द्र वंश के चन्द्रमा, रघु वंश के राजा रघु ,यादव वंश के यदु तथा कौरव वंश के कुरू, इसी प्रकार बीकाजी के द्वारा बीकानेर, जोधाजी के द्वारा जोधपुर, डूंगर सिंह जी के द्वारा श्री डूंगरगढ तथा गोपाल सिंह जी के द्वारा गोपाल पुरा आदि; ये कारण सम्बोधन सभी समाज,वस्तु व स्थान के लिए होते हैं ; परिस्थिति के लिए भी होता है जैसे वैदिक काल है, महाभारत काल है, भक्ती आन्दोलन काल है । कोई भी कार्य कारण से व परिस्थिति के प्रभाव से होता है इसी कारण से उस कार्य में उस कारण व परिस्थिति की पहचान लागू रहती है। धनावंशी सम्बोधन में सिर्फ और सिर्फ धन्नाजी महाराज का नाम ही शत प्रतिशत प्रमाण है । यथा-----
- जिस प्रकार गुरू श्री रामानन्द जी महाराज से रामावत सम्प्रदाय, रंकाजी महाराज से रंकावंशी सम्प्रदाय, पीपा जी महाराज से पीपावंशी, कूबा जी महाराज से कूबावंशी तथा फरषाजी महाराज से फरषवंशी समाज हुआ इसी प्रकार धन्ना जी महाराज से धन्नावंसी समाज हुआ । इनमें कोई छोटा बङा नहीं है क्योंकि इन सबके गुरूवर भगवान के अनन्य भक्त थे ।किसी भी समाज का आदमी किसी गांव में जाकर ठाकुरजी का पुजारी बनना चाहे, उसे गांव के लोग वैरागी ही स्वीकार करते हैं, ऐसा नहीं कहते कि तू धन्नावंसी नहीं है तो हम तुझसे पूजा नहीं करवायेंगे। जगह जगह इन छःहों समाजों के लोग पुजारी पदासीन हैं। दूसरे अगर कोई इन परम्परा गत छंहों समाजों में बङा है तो, मैं तो धन्नावंश को ही बङा मानता हूं क्योंकि, और समाजों में कहीं कम, कहीं ज्यादा गुरू की जाति के अलावा दूसरी जातियों की मिलावट है परन्तु धन्नावंश के गुरू धन्ना जी महाराज जाट थे और उनके अनुयायी सिर्फ जाट-जाट ही हुए जिसका प्रमाण है, हमारे जाति नख। इस प्रमाण का कोई प्रतिउत्त्तर नहीं है।
- राव अपनी बही पढना शुरू करते हैं, तब कुछ अपनी रीति में घूम- घूम कर ब्रह्मा जी में पहुंचते हैं, तथा ब्रह्मा जी से रामानुज जी तथा उनके बाद रामानन्द जी के पास पहुँचते हैं। बीच में कहीं धन्नावंशी समाज का नाम नहीं आता। रामानन्द जी से पहले का वैराग संन्यास में ही है। यह गृहस्थी वैराग रामानन्द जी का ही प्रसाद है, जो कि रामावत सम्प्रदाय, उन्होंने खुद ने बनाया, तथा पीपाजी, धन्नाजी को भी प्रेरणा दी।तथा अन्य सन्तों ने भी उनसे प्रेरित होकर रंकावंशी फरषवंशी कूबावंशी आदि समाज बनाए।आवश्यकतानुसार ऐसा हुआ। क्योंकि उस समय मुग़लों द्वारा अत्यधिक धार्मिक अत्याचार हो रहे थे ।हिन्दू धर्म को अति क्रूरतापूर्ण तरीके से इस्लाम में परिवर्तित किया जा रहा था ।हिन्दू धर्म को मजबूत बनाने के लिए वैरागी व और भी कई धार्मिक सम्प्रदाय बने ।
- हमारे ही भाई लोग धन्नावंशी समाज को मनगढ़ंत नाम के लोगों से समाज का उद्गम बता देते हैं। जैसे धनेष्ठा,धनुर्वंशी,धनंजय धन्यवंशी आदि जिसका समाज के सम्बन्ध में कोई नामो-निशान तक नहीं है ।कई धनवंतरि का नाम लेते हैं परन्तु धनवंतरि जी से धन्नावंश का वर्णन श्रीमद् भागवत में व महाभारत में आए बिना कब तक रहता?इसलिए धन्ना जी महाराज प्रत्यक्ष प्रमाणित हैं ।इसलिए मैं मेरे समाज बन्धुवों से यही प्रार्थना करता हूँ कि मनगढ़ंत व कई नामों के साथ जोड़-जोड़ कर समाज को बदनाम न करें ।
- यह भी एक पक्का ही अनुमानित सबूत है कि किसी भी कुनबे की पीछली पीढियों की गिनती की जाय तो आठ दस या दस बारह पीढियां ही गिनने में मिलती हैं। इससे यह साक्ष्य माना जाता है कि धन्नावंशी समाज अधिक पुराना न हो कर ज्यादा से ज्यादा चार सौ-पांच सौ सालों से अधिक नहीं हो सकता। यह एक वैज्ञानिक रूप का प्रमाण है ।इसी अवधि के समक्ष सभी समाज रंकावंशी, फरषवंशी, कूबावंशी, पीपावंशी आदि हैं इसलिए धन्नावंशी समाज की भी शुरूवात यहीं से ही है। इसे आदि काल से बताया जाना तथा अनर्गल नामों से सम्बोधित करना अपने समाज को बदनाम करना व अपनी बढ़ाई अपने आप करना अभिमानी का काम होता है ।
- बहुत से कुनबे ऐसे भी हैं, अपने समाज में जो कि सिर्फ और सिर्फ डेढ़ सौ-दौ सौ सालों में ही जाटों में से वैराग को स्वीकार किया और धन्नावंसी बने ।जिनकी आठ दस पीढियां ही मुष्किल से हुई हैं ।ऐसे हैं तो बहुत से लेकिन मै एक उदाहरण के तौर पर बताता हूं कि राजगढ तहसील में एक गागङवास नाम का गांव है ।वहां एक बेनीवाल नख का वैरागी बताया गया ।उसके संतान न होने के कारण उसने पूनियां जाट का लङका गोद लिया था ।गागङवास के वर्तमान में सत्त्तर-पचहतर घर वैरागी के रूप में उसी पूनियां जाट की संतानें हैं जोकि राव की बही सबूत दे रही है ।उनके सम्बन्ध सारे समाज में ही है जगह-जगह ।
- यह एक निष्पक्ष प्रमाण है, जोधपुर महाराजा द्वारा मर्दुमशुमारी राज मारवाड़ नाम की एक पुस्तक जिसे हर जाति अपना प्रमाण स्वरूप स्वीकार करती हैं ।यह पुस्तक जोधपुर महाराजा द्वारा 130 वर्षों पहले करवाई गई एक सर्वे की रिपोर्ट है ।जोधपुर रियासत में निवास करने वाली हर जाति का विवरण है उसमें स्पष्ट रूप से धन्नावंश के प्रवर्तक धन्ना जी महाराज का वर्णन हुआ है ।87 साल पहले का श्री हरिदास जी महाराज धन्नावंसी महन्त श्री गोवर्धननाथ मन्दिर जोधपुर द्वारा धन्नावंशी इतिहास लिखित प्रकाशित किया हुआ है जोकि सिर्फ और सिर्फ धन्नावंशी समाज के लिए ही है ।इससे बङा और क्या सबूत चाहिए?