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दोतिना ( जायल, नागौर)

दोतीणा की कथा 

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धनावंशी स्वामियों में राजाओं के काल में प्रभुत्व के कारण तीन गांवों को -ढाई किलों की उपाधि मिली हुई थी ।

आधा किलो -बिड्यासरी 

दोतीणो -साधूपुरो पूरो किलो 

अर्थात अपने हलके में दोतीणा के स्वामियों का पूरा दबदबा था ।जोधपुर के राजाओं ने पूरा सम्मान दिया ।नागौर और जायल के ठाकुरों ने भी पूरा सम्मान किया ।जायल के महाराजा पेमसिंह ने सात सौ एक बीघा जमीन मंदिर को प्रदान की ।संवत  1784 को मंदिर को यह भूमि मिली ।ताम्रपत्र में महंत जी को भूमि संभलाने का उल्लेख है । 

दोतीणा का पहले नाम मोरेड़ था ।इसे किसी मुसलमान ने बसाया था । बाद में इसमें  धनावंशी स्वामी आकर बस गए और गांव की पूरी भूमि की  तीन पाती में दो पांती खालसे और तीजी पांती धनावंशी स्वामियों की थी ।इस दो -तीन शब्द को लेकर ही धीरे धीरे दोतीणा शब्द प्रचलित हो गया ।

दोतीणा के महंत ठाकुर दासजी बड़े प्रभुत्व वाले थे ।उनके सम्बन्ध में एक कहावत प्रचलित है ।

दोतीणो गढ द्वारका, 

ठावो ठाकुर दास ।

आयां नै आदर मिलै, 

पावै राबड़ी छाछ ।।

दोतीणा के निकट बेनीवाल नख के स्वामियों के नौ गांव है ।गांव में बेनीवाल जाट भी हैं ।

धनावंशी स्वामी यहां लगभग साढे तीन सौ वर्ष पहले आकर बसे ।मोरेड़  (दोतीणा ) में पहले पहल टीकमदास जी आए ।उनके छह पुत्र थे । बड़े पुत्र का नाम मानदास था ।मानदास के पुत्र दो हुए -श्याम दास और गोविंद दास ।गोविंददास के पुत्र थे - स्वनामधन्य -ठाकुर दासजी ।ठाकुर दासजी के पुत्र केसूदासजी निहंग रहे ।वे उच्च कोटि के साधु थे -उन्होंने जीवित समाधि ग्रहण करली ।ऊंचे टीले पर आज भी उनकी समाधि है ।अब उसे नया रूप दिया गया है । केसूदासजी के गोद मानदास गए ।मानदास के पुत्र लिछमण दास ।लिछमण दास के तीन पुत्र हुए ,उन में छोटे पुत्र छत्र दास ।छत्र दास के जानकी दास ।जानकीदास के सीताराम ।सीताराम के लाधूदास ।लाधूदास के चार पुत्र ।बड़ा पुत्र हड़मानदास ।हड़मानदास के पांच पुत्रों का परिवार वर्तमान में है । इन पांच पुत्रों में एक पुत्र बदरीदासजी के पुत्र श्री सुरेन्द्र जी बेनीवाल ने मुझे यह सच्ची सूची उपलब्ध करवाई ।लगभग ढाई घंटे तक वे अपनी मोटरसाइकिल पर चिलचिलाती धूप में मुझे मंदिर तथा जहां शिलालेख बताए जाते हैं -वहां ले गए ।जिस खेत में वे ले गए वहां एक दस फुट लम्बा स्तम्भ टेढी स्थिति में खड़ा है । यह हलके पीले रंग का उत्कीर्ण स्तम्भ है जिसके ऊपरी चारों दिशाओं में महाराणा कुंभा कालीन शैली में -1 ×1•5 साइज में गणपति -सूर्य -घोटे सहित हनुमानजी -तथा शिव परिवार की मूर्तियां उत्कीर्त है । ऐसी लाट तालाबों और बावड़ियों के आगे लगाए जाने का प्रचलन था ।खेत मालिक ने कहा कि यहां सुनते हैं कि कभी बावड़ी थी -जो स्वामी परिवार के अधिकार में थी ।स्वामियों के लगभग दो सौ वर्ष प्राचीन कुछ जमीनों के कागज भी मैंने पढकर सुनाए ।यहां एक भी साक्ष्य धनावंशी स्वामियों का मुझे 350 वर्ष से पहले का मुझे नहीं मिला । भले ही न मिले पर महंत ठाकुर दासजी के दबदबेवाले गांव में जाकर प्रसन्नता हुई और मुझे दोपहर दो बजे ग्यारह किलोमीटर की मोटरसाइकिल यात्रा जीवनभर याद रहेगी ।मुझे लग रहा था कि मैं जलती आग में से गुजर रहा हूं और चलते चलते यह मोटरसाइकिल जल जाएगी ।पर दुस्साहस का अपना आनंद है ।

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