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 धन्ना वंशी स्वामी समाज के इतिहास से संबंधित ऐतिहासिक पुस्तकों में उपलब्ध ऐतिहासिक क्या-क्या  तथ्य हैं ?

1. रिपोर्ट मरदुमशुमारी मारवाड़ सन 1891
इस पुस्तक के लेखक जोधपुर रियासत के मंत्री राय बहादुर मुंशी हरदयाल सिंह थे
इन्होंने अंग्रेज सरकार के निर्देशानुसार मारवाड़ क्षेत्र की जातियों की जनगणना के निर्देशों की पालना में मारवाड़ की समस्त 466 जातियों की सांस्कृतिक ऐतिहासिक जानकारी के साथ-साथ जनगणना करवाएं इस पुस्तक के पेज संख्या 303 व 304 धनावंशी साध समाज का वर्णन निम्नानुसार किया गया है
 
"रामानंद के चेलों में एक धन्ना जाट थे यह बड़े भगत हुए। इन्होंने अपनी जात के बहुत से जाटों को चेला किया और साधों का धर्म सिखाया, यह सब धन्ना वंशी साद कहलाए। आचार व्यवहार रामावत साधुओं के माफिक है मारवाड़ बीकानेर में बहुत पाए जाते हैं तिलक रामानंदी लगाते हैं इनका रोटी व्यवहार चारों संप्रदाय से हैं लेकिन बेटी का विवाह मां-बाप नाना नानी के 4 गोत्र टालकर अपनी जाति यानी धन्ना वंशी साधो में ही करते हैं। इनमें नाता नहीं होता।"

रिपोर्ट मरदुमशुमारी राज मारवाड़ 1891 ई." के संबंध में कुछ तथ्य :-( "मरदुमशुमारी" शब्द का हिन्दी में अर्थ होता है - "जनगणना" )*"रिपोर्ट मरदुमशुमारी राज मारवाड़ 1891 ई."  मारवाड़ की तात्कालीन "सरकार द्वारा" , आज से "लगभग 130 वर्ष पूर्व" , सन् 1891 में  कराई गई "जनगणना" की "सरकारी रिपोर्ट" है  इस "जनगणना" हेतु मारवाड़ राज्य में अलग से एक "नवीन विभाग स्थापित" किया गया ....... जिसके सुपरिटेंडेंट रायबहादुर मुंशी हरदयाल सिंह तथा डिप्टी सुपरिटेंडेंट मुंशी देवी प्रसाद के साथ ही "सैकड़ों कर्मचारियों की टीम" को ........"लगभग 25,00,000 ( पच्चीस लाख )  लोगों की जनगणना" कर .....इस जनगणना रिपोर्ट को प्रकाशित  करने में  लगभग "तीन वर्ष का समय" लगा............!!उक्त "सरकारी रिपोर्ट" में मारवाड़ राज्य की "सभी 462 जातियों" के पुरुषों एवं महिलाओं की अलग अलग गणना की गई है............इसके साथ ही , प्रत्येक "जाति की उत्पत्ति" कैसे हुई , इसका वर्णन किया गया है.......संबंधित जाति के रहन-सहन , खान-पान , व्यवसाय , संस्कृति एवं रीति-रिवाज का उल्लेख किया गया है ............!!! अतः "तात्कालीन सरकार" के एक "सरकारी विभाग की टीम" द्वारा "462 जातियों के 25,00,000 लोगों की जनगणना" के उपरांत तैयार कर प्रकाशित की गई ,उक्त "सरकारी रिपोर्ट" को पूर्णतया "निष्पक्ष एवं प्रामाणिक नहीं मानने" का कोई भी "तर्कसंगत कारण" दूर दूर तक प्रतीत "नहीं" होता है............
 
2. डॉक्टर भंवर सिंह सामोर, पूर्व प्राचार्य लोहिया कॉलेज चूरू ने अपने आलेख
"सामोर एवं धन्नावंशी"
में लिखा कि उस युग के महान ईश्वर उपासक धन्ना भगत ने नीति वान उदार मोहिल शासकों से प्रभावित होकर अपना उत्तरार्द्ध समय मोहिलवाटी में व्यतीत करने का निश्चय किया। इसलिए अपने पुश्तैनी गांव टोंक(धुंआ कला) से रवाना होकर मोहिल वाटी आए फिर वहां से फिरवांशी पधारे तथा उसके बाद तंवरा गांव पहुंचे। तंवरा गांव उस समय जेतसी समोर के पट्टे में था। यहां आने पर जैतसी सामोर ने उनके स्वागत में एक दोहा कहा,,
"आज जैतसी ऊजलो,धारण चरण धनेश।
पांण जोड़ आखै प्रगट,अलग पुरा आदेश।।
वहां से धनाजी जेतसी के आग्रह पर कसुंबी पधारे क्योंकि कसुंबी भी उसी समय जेतसी सामोर के पट्टे में था। स्वागत में कहा
"आज कसुबी उजली,धिन धिन गुरां धनेश
ओ पगफेरो आपको,रहसी याद हमेस ।
इनके अनुसार धन्ना भगत 1 वर्ष से अधिक समय तक कसुंबी में रुके

3.  पदम श्री से सम्मानित लेखक श्री सीताराम लालस द्वारा रचित राजस्थानी शब्दकोश खंड 4 के पृष्ट संख्या2528 पर धन्ना वंशी शब्द की व्याख्या इस प्रकार की
है"रामानंद जी के शिष्यों में धन्ना जाट भी था किसी के द्वारा दीक्षित साध धन्नावंशी कहलाए""

4.  नानूराम संस्कर्ता द्वारा लिखी गई पुस्तक ,खेड़े रपट, के पेज संख्या292 पर वर्णन:
"जाट धन्ना भगवान का एक परम भक्त हुआ जिसके नाम पर धन्ना वंशी वैरागियों का मत प्रचलित हुआ उनके सभी गोत्र जाटों से मिलते हैं।"

5.  डॉक्टर गोविंद अग्रवाल प्रोफेसर लोहिया कॉलेज चूरू द्वारा रचित "चुरू मंडल का शोध पूर्ण इतिहास"
पुस्तक के पेज संख्या 62-63 पर उल्लेख आया है
कसुंबी गांव में धन्ना जी का खेत है जिसमें लाल पत्थर की एक देवली है इसमें उस बावड़ी और मंदिर का भी उल्लेख है जा धनाजी ने आसन लगाया था
 
6.  डॉ अनिल जैन द्वारा लिखी गई पुस्तक"गुरु मिलिया रामानंद"
इस पुस्तक के पेज नंबर 94_95 पर धन्ना भगत का वर्णन है जिसमें बताया गया है कि धन्ना जी का जन्म 1415 इसमें में हुआ था इन्होंने अंग्रेजी लेखक मेकालिफ की पुस्तक का हवाला देते हुए बताया की देवली से 20 किलोमीटर दूर धुआं कला गांव है जहां पर धन्ना भगत का जन्म हुआ वहां पर वह खेत भी मौजूद है जिसमें मोती निपजे थे। उस खेत को धनाजी की पाटी कहते हैं
इन्होंने त्रुटि वंश धन्ना वंशी स्वामी को धन्ना वंशी जाट कहते हुए लिखा है
"राजस्थान में आज भी धन्ना वंशी जाट रहते हैं जिनका आचार व्यवहार रामावत साधुओं के समान है"

7.  श्री बृजेंद्र जी सिंघल द्वारा रचित पुस्तक "संत सप्तक"मैं पेज नंबर 90 पर वर्णन किया है
इन्होंने धन्ना जी को रामानंद का शिष्य मानते हुए कबीर रैदास और सैन के समकालीन माना है तथा धन्ना भगत को रामानंद का अंतिम शिष्य मानते हुए इनका जन्म 1455 से 1460 माना है इन्होंने भी गलती से धन्ना वंशी स्वामी को धन्ना वंशी जाट लिखा है
"आज भी धन्ना वंशी जाट रामानंद संप्रदाय से जुड़े हैं"
उन्होंने लिखा
,"धन्ना भगत सीताराम का उपासक रामानंद स्वामी का शिष्य गृहस्थआश्रम में रहते हुए भी स्वामी कहलाया था। इसी कारण अनेक जाट अपने नाम के साथ स्वामी शब्द का प्रयोग करते हैं"'

8. श्री भंवरलाल जांगिड़ द्वारा लिखी गई पुस्तक"लाडनू एक ऐतिहासिक सर्वेक्षण"
इस पुस्तक के प्रस्तावक डॉक्टर भंवर सिंह समोर पूर्व प्राचार्य लोहिया कॉलेज चूरू है
इन्होंने पेज संख्या 332 पर लिखा
"जाटों में हुए प्रसिद्ध भक्त धन्ना के अनुयाई धन्ना वंशी साद कहलाते हैं"
 
कहते हैं सर्वप्रथम धन्ना भगत ने तंवरा के एक धार्मिक परिवार जो कालेरा नख के जाट थे उन्हें सर्वप्रथम 1532 रामनवमी के दिन धन्ना वंशी समाज की कंठी बांधकर दीक्षा प्रदान की तथा उसके पश्चात कसूंबी में आसपास के लोगों को जो आस्थावान थे उन्हें भी धन्ना वंशी साध की दीक्षा प्रदान की।

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