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9. कुछ लोगो का कहना है गोपालपुरा गद्दी 1100 साल पुरानी है एवं धन्नावंशी समाज धनाजी से पहले से ही अस्तित्व में था इसका यह प्रमाण है।  इस बात में कितनी सत्यता है?

 
गोपालपुरा का इतिहास यह है कि राव बीका के छोटे भाई बीदा 1538 में बीदासर आए। उनके पड़पोते ने गोपालपुरा बसाया। 1730 में बनी गोपालपुर गद्दी को जब कोई ग्यारह सौ वर्ष पहले की बताता है तो हंसी के अलावा क्या आए।

वर्तमान महंतजी के गुरु जी ने 40 वर्ष पहले गोपालपुरा महंत द्वारे का जीर्णोधार करवाया।  उन्होंने मंदिर की स्थापना का एक संक्षिप्त शिलालेख संवत 953  का लगा दिया। उन्होंने इस बात पर तनिक भी विचार नहीं किया कि जब गोपालपुरा गांव को बसे हुए ही पौने चार सौ वर्ष हुए हैं तो इतनी पुरानी संवत का नया शिलालेख लगाने का क्या औचित्य है? वस्तुत: न डूंगर बालाजी का मंदिर पुराना है और न ही यह पुराना है। दोनों साथ-साथ के ही मंदिर हैं। बीदावत गोपाल सिंह जी ने डूंगर पहाड़ी पर अपना किला बनाना चाहा था। उन्होंने पहाड़ी के ऊपरी भाग को समतल करवाया तभी उन्हें बहुत तरह के अपशकुन हुए। कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। किसी विद्वान सज्जन ने उन्हें सलाह दी कि इस पहाड़ी पर आपको किला नहीं बनाना चाहिए। आपको किला भी बनाना चाहिए और गांव भी बसाना चाहिए पर पहाड़ी की तलहटी में। उनको यह बात उचित लगी। तब उन्होंने समतल कराई गई जगह पर बालाजी का एक मंदिर स्थापित कर दिया। वही मंदिर डूंगर बालाजी मंदिर है। इस बीच गोपाल सिंह की मृत्यु हो गई तो उनके पुत्र ने पिता की स्मृति में गोपालपुरा गांव बसाया और अपना किला भी बनवाया जो आज भी मौजूद है। और उसके बाद ही ठाकुर जी का मंदिर बना। 



गोपालपुरा का इतिहास यह है कि राव बीका के छोटे भाई बीदा 1538 में बीदासर आए। उनके पड़पोते ने गोपालपुरा बसाया। 1730 में बनी गोपालपुर गद्दी को जब कोई ग्यारह सौ वर्ष पहले की बताता है तो हंसी के अलावा क्या आए।

वर्तमान महंतजी के गुरु जी ने 40 वर्ष पहले गोपालपुरा महंत द्वारे का जीर्णोधार करवाया।  उन्होंने मंदिर की स्थापना का एक संक्षिप्त शिलालेख संवत 953  का लगा दिया। उन्होंने इस बात पर तनिक भी विचार नहीं किया कि जब गोपालपुरा गांव को बसे हुए ही पौने चार सौ वर्ष हुए हैं तो इतनी पुरानी संवत का नया शिलालेख लगाने का क्या औचित्य है? वस्तुत: न डूंगर बालाजी का मंदिर पुराना है और न ही यह पुराना है। दोनों साथ-साथ के ही मंदिर हैं। बीदावत गोपाल सिंह जी ने डूंगर पहाड़ी पर अपना किला बनाना चाहा था। उन्होंने पहाड़ी के ऊपरी भाग को समतल करवाया तभी उन्हें बहुत तरह के अपशकुन हुए। कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। किसी विद्वान सज्जन ने उन्हें सलाह दी कि इस पहाड़ी पर आपको किला नहीं बनाना चाहिए। आपको किला भी बनाना चाहिए और गांव भी बसाना चाहिए पर पहाड़ी की तलहटी में। उनको यह बात उचित लगी। तब उन्होंने समतल कराई गई जगह पर बालाजी का एक मंदिर स्थापित कर दिया। वही मंदिर डूंगर बालाजी मंदिर है। इस बीच गोपाल सिंह की मृत्यु हो गई तो उनके पुत्र ने पिता की स्मृति में गोपालपुरा गांव बसाया और अपना किला भी बनवाया जो आज भी मौजूद है। और उसके बाद ही ठाकुर जी का मंदिर बना। 

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