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 5. यदि हम धन्नाजी को अपना पंथप्रवर्तक मानने लग जाएंगे व यदि यह कहेंगे कि हमारे पूर्वज जाट जाति से थे तो हमारी इज्जत व आदर सम्मान का  क्या होगा जो इतने वर्षों से हमे मिल रहा था? क्या लोग हमें हीन भाव से नही देखेंगे? 

 आज से करीब 500 साल पहले हमारे पूर्वज जो उस समय में सबसे प्रबुद्ध जन थे उन्होंने एक अच्छा मार्ग चुना व भगवान की भक्ति का मार्ग चुना व भक्ति के साथ-साथ अपनी आजीविका की चलाने के लिये खेती करना चालू रखा। हम सभी को अपने पूर्वजों पर गर्व है कि उन्होंने इतने वर्ष पूर्व ही एक अच्छे मार्ग को अपनाया। किसी भी परिवार के लिए अपना समाज त्यागकर एक नए समाज में जुड़ना इतना आसान नही होता और उस समय भी हमारे पूर्वजों ने काफी परेशानियों को झेला होगा लेकिन फिर भी उन्होंने भक्ति के मार्ग को ही सही माना।
दूसरी बात, समाज मे किसी का स्थान या सम्मान उसके सद्कर्मो से मिलता है। हमारे पूर्वजों के कर्म अच्छे थे, खुद खेतो में मेहनत कर अपनी आजीविका चलाते थे व जरूरतमंदो को भोजन देते थे, दिनचर्या , खानपान सब कुछ सर्वश्रेष्ठ था तभी सब लोग उन्हें सम्मान देते थे। रैदास जी एक निम्न जाति से होते हुवे भी सभी जातियों में माने जाते हैं। तो फिर इस बात से कोई फर्क नही पड़ता कि हम आज से 500 साल पहले किस जाति से थे। सच्चाई यह ही है कि हमारे पूर्वज जाट जाति से थे तो इसमें हमे नीचा देखने वाली कोई बात नही है एवं ना ही अपने मन मे कोई हीन भावना रखनी है जबकि हमे तो गर्व होना चाहिए कि हमारे पूर्वजों ने एक अच्छा रास्ता अपनाया।
इसलिए यदि हम अपने कर्म अच्छे रखेंगे तथा अपने पूर्वजों के पदचिन्हों की ओर चलेंगे तो हमे वो ही सम्मान मिलता रहेगा जो सदियों से मिल रहा है। बस हमे जो आजकल पश्चिम सभ्यता या दूसरे समाज के लोगो के प्रभाव से बचकर बुरी आदतों से दूर रहना है।

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