3. हमारे पूर्वज जाट जाति से थे, इसके क्या क्या प्रमाण है?
जब हम यह बात भली-भांति समझ लेते हैं कि हमारे पंथपरवर्तक गुरु धनाजी महाराज ही थे तो फिर सभी प्रश्नों के उत्तर आसानी से मिल जाते हैं;
इसका सबसे बड़ा प्रमाण तो यह है कि हमारे सारे जातिय नख जाट जाति के नखों से मिलते हैं सिर्फ 1~2 प्रतिशत अपवाद के सिवाय। अभी वर्तमान में जाटों के लगभग 3000 जातीय नख है। धन्नावंशी समाज में लगभग 200 जातीय नख है। इससे हम यह समझते हैं कि उस समय जो भी
प्रबुद्व जन थे जिनको धन्नाजी की बाते अच्छी लगी वो ही लोग इनके अनुयायी बने व धन्नावंशी बने।
कुछ लोगो से यह कहते हुए भी सुना है कि जातिय नख मिलने का मतलब यह नही की हमारे पूर्वज जाट जाति से रहे थे यह भी हो सकता है जाट जाति हम में से बनी हो। वर्तमान में जाट जाति की जनसंख्या कुछ करोड़ है जबकि हमारी जनसंख्या तो सिर्फ 1~1.5 लाख तक ही है तो फिर ऐसा कैसे हो सकता है कि वो हम में से निकलकर इतनी ज्यादा संख्या में हो गये एवं हमारी अभी इतनी ही संख्या है। जबकि सच तो यह है कि हमारे पूर्वज जाट जाति से थे व उन्होंने धनाजी के अनुयायी बनकर धन्नावंशी समाज अपनाया लेकिन अपने जातीय नख व पहचान को नही छोड़ा। आप यदि दूसरे सम्प्रदायों के बारे में अध्ययन करते हैं तो यह बातें और ज्यादा साफ हो जाती है जैसे सिख सम्प्रदाय, विशनोई, जसनाथी, इन्होंने भी अपने पुराने जातिय नख नही छोड़े है। जातीय नख किसी के भी इतिहास जानने का सबसे आसान तरीका है।
एक और बात, अभी वर्तमान में धनावंशी मुख्यतौर से राजस्थान के उत्तरी पश्चिमी जिलों व हरियाणा-पंजाब के वे जिले जो कि राजस्थान की सीमा से लगे हुए हैं सिर्फ इन क्षेत्रों में ही है। यदि हम धनाजी के बारे में अध्ययन करते हैं तो काफी जगह यह लिखा हुआ मिलता है कि धनाजी जंहा रहते थे वंहा से उत्तर दिशा में निकले थे व लोगो को भक्ति के लिए प्रेरित किया था व अपने जाति के लोग ही उनके अनुयायी बने थे। इस हिसाब से भी यही क्षेत्र आते हैं जो की जात बाहुल्य क्षेत्र है। दूसरी एक और बात जहाँ जिस जाती नख के जाट है उसी जगह उस जाती नख के धनावंशी भी है । काफी गांवो में तो इस चीज़ का प्रमाण भी है, एक ही गांव में एक ही जाती नख के कुछ परिवार जाट व कुछ परिवार धन्नावंशी है ।
इसका एक और प्रमाण हम यह भी मान सकते हैं कि आज जितने भी वैष्णव संप्रदाय है उनमें सबसे ज्यादा खेती करने वाले धनावंशी ही है। आज भी यह मान्यता है कि जाट व धनावंशी के बराबर खेती करना किसी दूसरी जाति वाले के बस की नही है। सभी धनावंशीयो के पास इतनी मात्रा में खेती की जमीन होना भी इसका प्रमाण है। हमारे पूर्वज मेहनत कर कमाने में विश्वास करते थे व दूसरा धर्म था कि कोई भी व्यक्ति घर से बिना भोजन किये भूखा नही जाना चाहिए। जो परंपरा धनाजी महाराज ने चलाई थी, खेती के साथ-साथ भक्ति वाली, वो आज भी हमारे समाज मे है।
इसके अलावा यदि शिक्षा के दृष्टि से देखा जाये तो यदि हम ब्राह्मण होते तो हमारे पूर्वज काफी पढ़े-लिखे होते व हमारा लिखित इतिहास भी होता लेकिन पुराने जमाने मे हमारा शिक्षा के स्तर जाट समाज के बराबर ही था । बाकी रहन-सहन, शारीरक रचना, व्यहार आदि से भी हमारा सम्प्रदाय जाट जाति से मेल खाता है।