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2. धनावंश की उत्पति के विषय मे और क्या क्या धारणाएं है? 

आज से करीब 600 वर्ष पहले संत धन्ना जी महाराज ने अपने गुरु रामानंद जी के कहने पर लोगो को भक्ति मार्गे अपनाने के लिए प्रेरित किया था तथा उनके कहने पर उनके स्वजातीय लोगो ने खेती के साथ साथ भक्ति का मार्ग अपनाया व एक नया सम्प्रदाय अस्तित्व में आया जिसे हम धन्नावंशी समाज कहते हैं।
लेकिन इसमें कई तरह की भ्रांतियां भी चल रही है कि धन्नावंशी समाज तो सनातन काल से ही है एवम यह धनेष्ठ ऋषि के नाम पर है।
सनातन काल वाले धारणा इसलिए मित्य है कि जितने भी दूसरे 15~20 वैष्णव संप्रदाय है जैसे कि रामावत, रांकावत, निम्बार्क, पिपावंशी आदि, यह सब किसी ने किसी गुरु के लोग अनुयायी बनने से अस्तित्व में आये है और उस समय की कुछ विकट परिस्थितियों के कारण। इन सभी सम्प्रदायों का लिखित इतिहास है एवं सारे तथ्य भी मौजूद हैं। धन्नावंशी समाज का इतिहास भी इनके जैसा ही होगा । ऐसा नही है कि यह सारे सम्प्रदाय तो अभी 15~16 वी सदी में अस्तित्व में आये हैं जबकि एकमात्र धन्नावंशी समाज आदि काल से है। इसलिए हमें इस बात की स्वीकार करना होगा कि धन्नावंशी समाज की भी शुरुवात 15~16 वी सदी में ही हुई थी जो कि संत धनाजी के समय की बात है।
दूसरी बात धनेष्ठा ऋषी की, किसी भी शास्त्र या पुराण में धनेष्ठा नाम के ऋषि का कोई प्रमाण नही मिलता। यदि हम मान भी ले के हम धनेष्ठा ऋषि के संतान हैं तो फिर इतनी सदियो से सिर्फ राजस्थान के कुछ जिलों व पंजाब हरियाणा के जिले जो कि राजस्थान की सीमा के पास है सिर्फ वहीं हमारी मौजूदगी है। यदि हम आदि काल से होते तो आज पूरे भारतवर्ष में फैले होते। इसलिए हमें इस बात को स्वीकार करना होगा कि जंहा जंहा धनाजी ने भ्रमण किया जो कि जाट बाहुल्य क्षेत्र है सिर्फ वंही धनावंशी है एवम धन्नावंशी समाज की उत्पति भी धनाजी के अनुयायी बनने से ही शुरू हुई थी। 

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