8. धन्नावंशी समाज के लिए गलता जी का क्या महत्व हैं?
गलता गद्दी की गुरु परंपरा
गलता गद्दी की स्थापना श्री कृष्णदासजी पयहारी ने की थी। वे रामानंदजी के शिष्य अनंतानंदजी के शिष्य थे। पयहारीजी ने बारह वर्षों तक पुष्कर में तपस्या करने के उपरांत गलता में अपना स्थान बनाया।
श्री कृष्णदासजी बड़े चमत्कारी संत थे। उन्होंने गलता में नाथ पंथी तारानाथ योगी के अभिमान को गलित किया। आमेर के महाराजा पृथ्वीसिंह ने इन्हें अपने गुरु का सम्मान प्रदान किया। पयहारीजी के ब्रह्मलीन होने पर उनके दो शिष्य कील्हदासजी और अग्रदासजी में से बड़े शिष्य कील्हदासजी ने गद्दी को संभाला। शिष्य परंपरा इस प्रकार है
(1) श्री कृष्णदास पयहारी
(2) श्री कील्हदास
(3) श्री कृष्णदास (छोटे)
(4) श्री विष्णुदास
(5) श्री नारायणदास
(6) श्री हरिदेवाचार्य
(7) श्री रामप्रपन्नाचार्य (मधुराचार्य)
(8) श्री हरियाचार्य
(9) श्री श्रियाचार्य
(10) श्री जानकीदास
(11) श्री रामाचार्य
(12) श्री सीतारामचार्य
(13) श्री हरिप्रसादाचार्य
(14) श्री हरिवल्लभाचार्य
(15) श्री हरिशरणाचार्य
(16) श्री रामोदाराचार्य
(17) श्री अवधेशाचार्य (वर्तमान महंत)
गलता गद्दी का इतिहास कुछ इस तरह है-
1 - रामानंद जी के 12 शिष्य हुए, उनमें एक धनाजी थे ।
2 - रामानंद जी के प्रथम शिष्य थे -अनन्तानंदजी यानि धनाजी के गुरू भाई ।
3- अनन्तानंदजी के एक शिष्य हुए कृष्ण दास जी पयहारी उन्होंने 16 वीं शताब्दी मे गलता आश्रम की स्थापना की, ये धनाजी के बाद हुए ।
4- कृष्ण दास जी पयहारी के दो शिष्य हुए 1-कील्ह दास जी दूसरे अग्र दास जी, कील्ह दास जी गलता पीठ के आचार्य हुए, यह रामावतों की एक बड़ी पीठ है ।
5-अग्र दास जी ने गलता से अलग हो कर रैवासा में नई पीठ की स्थापना की । उनका जन्म संवत 1553 में हुआ, उन्होंने दीक्षा संवत 1572 ग्रहण कर रामानंद सम्प्रदाय में एक नई परम्परा के अनुसार --रसिक सम्प्रदाय --की स्थापना की ।
तो, धन्नावंशी समाज का गलता और रैवासा से कोई सम्बन्ध नहीं है । चूँकि हम अपना कोई स्थान बना नहीं पाए हैं, इसलिए पुष्कर, गलता, रैवासा और भी न जाने कहां-कहां जाकर संतुष्टि प्राप्त करते हैं । धुवांकलां में धनाजी के यहां माथा टेकना पंसद नहीं है।