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ऐतिहासिक एवं संदर्भ ग्रंथों में श्री धन्ना भगत एवं धन्ना वंशी स्वामी समाज के संबंध में उपलब्ध तथ्य

  • लेखक की तस्वीर: prem das
    prem das
  • 13 जून 2022
  • 3 मिनट पठन

ऐतिहासिक एवं संदर्भ ग्रंथों में श्री धन्ना भगत एवं धन्ना वंशी स्वामी समाज के संबंध में उपलब्ध तथ्य निम्नानुसार है

1 पदम श्री से सम्मानित लेखक श्री सीताराम लालस द्वारा रचित राजस्थानी शब्दकोश खंड 4 के पृष्ट संख्या2528 पर धन्ना वंशी शब्द की व्याख्या इस प्रकार की है"रामानंद जी के शिष्यों में धन्ना जाट भी था किसी के द्वारा दीक्षित साध धन्नावंशी कहलाए""

2 नानूराम संस्कर्ता द्वारा लिखी गई पुस्तक ,खेड़े रपट, के पेज संख्या292 पर वर्णन,

"जाट धन्ना भगवान का एक परम भक्त हुआ जिसके नाम पर धन्ना वंशी वैरागियों का मत प्रचलित हुआ उनके सभी गोत्र जाटों से मिलते हैं।"

3 डॉक्टर गोविंद अग्रवाल प्रोफेसर लोहिया कॉलेज चूरू द्वारा रचित "चुरू मंडल का शोध पूर्ण इतिहास"पुस्तक के पेज संख्या 62-63 पर उल्लेख आया है

कसुंबी गांव में धन्ना जी का खेत है जिसमें लाल पत्थर की एक देवली है इसमें उस बावड़ी और मंदिर का भी उल्लेख है जा धनाजी ने आसन लगाया था

4 डॉ अनिल जैन द्वारा लिखी गई पुस्तक"गुरु मिलिया रामानंद"

इस पुस्तक के पेज नंबर 94_95 पर धन्ना भगत का वर्णन है जिसमें बताया गया है कि धन्ना जी का जन्म 1415 इसमें में हुआ था इन्होंने अंग्रेजी लेखक मेकालिफ की पुस्तक का हवाला देते हुए बताया की देवली से 20 किलोमीटर दूर धुआं कला गांव है जहां पर धन्ना भगत का जन्म हुआ वहां पर वह खेत भी मौजूद है जिसमें मोती निपजे थे। उस खेत को धनाजी की पाटी कहते हैं

इन्होंने त्रुटि वंश धन्ना वंशी स्वामी को धन्ना वंशी जाट कहते हुए लिखा है

"राजस्थान में आज भी धन्ना वंशी जाट रहते हैं जिनका आचार व्यवहार रामावत साधुओं के समान है"

5 श्री बृजेंद्र जी सिंघल द्वारा रचित पुस्तक "संत सप्तक"मैं पेज नंबर 90 पर वर्णन किया है

इन्होंने धन्ना जी को रामानंद का शिष्य मानते हुए कबीर रैदास और सैन के समकालीन माना है तथा धन्ना भगत को रामानंद का अंतिम शिष्य मानते हुए इनका जन्म 1455 से 1460 माना है इन्होंने भी गलती से धन्ना वंशी स्वामी को धन्ना वंशी जाट लिखा है

"आज भी धन्ना वंशी जाट रामानंद संप्रदाय से जुड़े हैं"

उन्होंने लिखा

,"धन्ना भगत सीताराम का उपासक रामानंद स्वामी का शिष्य गृहस्थआश्रम में रहते हुए भी स्वामी कहलाया था। इसी कारण अनेक जाट अपने नाम के साथ स्वामी शब्द का प्रयोग करते हैं"'

6 श्री भंवरलाल जांगिड़ द्वारा लिखी गई पुस्तक"लाडनू एक ऐतिहासिक सर्वेक्षण"

इस पुस्तक के प्रस्तावक डॉक्टर भंवर सिंह समोर पूर्व प्राचार्य लोहिया कॉलेज चूरू है

इन्होंने पेज संख्या 332 पर लिखा

"जाटों में हुए प्रसिद्ध भक्त धन्ना के अनुयाई धन्ना वंशी साद कहलाते हैं"

7 डॉक्टर भंवर सिंह सामोर, पूर्व प्राचार्य लोहिया कॉलेज चूरू ने अपने आलेख

"सामोर एवं धन्नावंशी"

में लिखा कि उस युग के महान ईश्वर उपासक धन्ना भगत ने नीति वान उदार मोहिल शासकों से प्रभावित होकर अपना उत्तरार्द्ध समय मोहिलवाटी में व्यतीत करने का निश्चय किया। इसलिए अपने पुश्तैनी गांव टोंक(धुंआ कला) से रवाना होकर मोहिल वाटी आए फिर वहां से फिरवांशी पधारे तथा उसके बाद तंवरा गांव पहुंचे। तंवरा गांव उस समय जेतसी समोर के पट्टे में था। यहां आने पर जैतसी सामोर ने उनके स्वागत में एक दोहा कहा,,"आज जैतसी ऊजलो,धारण चरण धनेश।

पांण जोड़ आखै प्रगट,अलग पुरा आदेश।।

वहां से धनाजी जेतसी के आग्रह पर कसुंबी पधारे क्योंकि कसुंबी भी उसी समय जेतसी सामोर के पट्टे में था। स्वागत में कहा

"आज कसुबी उजली,धिन धिन गुरां धनेश

ओ पगफेरो आपको,रहसी याद हमेस ।

इनके अनुसार धन्ना भगत 1 वर्ष से अधिक समय तक कसुंबी में रुके


कहते हैं सर्वप्रथम धन्ना भगत ने तंवरा के एक धार्मिक परिवार जो कालेरा नख के जाट थे उन्हें सर्वप्रथम 1532 रामनवमी के दिन धन्ना वंशी समाज की कंठी बांधकर दीक्षा प्रदान की तथा उसके पश्चात कसूंबी में आसपास के लोगों को जो आस्थावान थे उन्हें भी धन्ना वंशी साध की दीक्षा प्रदान की।

8 मरदुम सुमारी राज मारवाड़ सन 18 91

इस पुस्तक के लेखक जोधपुर रियासत के मंत्री राय बहादुर मुंशी हरदयाल सिंह थे

इन्होंने अंग्रेज सरकार के निर्देशानुसार मारवाड़ क्षेत्र की जातियों की जनगणना के निर्देशों की पालना में मारवाड़ की समस्त 466 जातियों की सांस्कृतिक ऐतिहासिक जानकारी के साथ-साथ जनगणना करवाएं इस पुस्तक के पेज संख्या 303 व 304 धनावंशी साध समाज का वर्णन निम्नानुसार किया गया है


"रामानंद के चेलों में एक धन्ना जाट थे यह बड़े भगत हुए। इन्होंने अपनी जात के बहुत से जाटों को चेला किया और साधों का धर्म सिखाया, यह सब धन्ना वंशी साद कहलाए। आचार व्यवहार रामावत साधुओं के माफिक है मारवाड़ बीकानेर में बहुत पाए जाते हैं तिलक रामानंदी लगाते हैं इनका रोटी व्यवहार चारों संप्रदाय से हैं लेकिन बेटी का विवाह मां-बाप नाना नानी के 4 गोत्र टालकर अपनी जाति यानी धन्ना वंशी साधो में ही करते हैं। इनमें नाता नहीं होता।"

उपरोक्त अनुसार धन्ना वंशी स्वामी समाज के इतिहास से संबंधित ऐतिहासिक तथ्य ऐतिहासिक पुस्तकों में उपलब्ध हुए हैं। जिन से यह प्रमाणित होता है की धन्ना वंशी स्वामी समाज के पंथ प्रवर्तक श्री धन्ना भगत ही थे और उनके नाम से ही इस समाज का नाम धन्ना वंशी स्वामी समाज पड़ा।

 
 
 

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